मूर्ख विद्वान्
बहुत समय पहले किसी नगर में चार मित्र रहते थे| उनमे गहरी
दोस्ती थी| वे हमेशा साथ रहते थे| उनमें से तीन व्यक्ति बड़े ही विद्वान् थे|
उन्होंने इतना कुछ सीखा पढ़ा था कि आगे और कुछ सीखने के लिए नहीं बचा था| परन्तु
इतने पढ़े लिखे होने पर भी उनमे सामान्य बुद्धि बिलकुल नहीं थी| इन तीनों के विपरीत
, चौथा इतना पढ़ा लिखा तो नहीं था , पर उसमें अक्ल और समझ कूट –कूटकर भरी थी|
एक बार चारों मित्र आपस में विचार-विमर्श कर रहे थे कि किस
प्रकार अपने ज्ञान का लाभ उठाकर धनोपार्जन करें और जीवन को सुखी बनायें| बातचीत के
दौरान पहले विद्वान् ने कहा, “हमें दूर-दूर के देशों की यात्रा करके दुनिया के
भिन्न-भिन्न लोगों के बारे में जानकारी हासिल करनी चाहिए| हो सकता है कि इस यात्रा
में हमें किसी राजा या धनी की कृपा प्राप्त हो जाये| तब हम आसानी से मालामाल हो
जायेंगे|” दूसरों ने यह बात मान ली|
तब पहले विद्वान् ने कहा, “हम तीन जनें तो सब विद्याएँ पढ़ें
हैं, इसलिए हमारा सफल होना भी निश्चित है| लेकिन इस चौथे का क्या होगा? यह तो निरा
बुद्धू है| इससे कुछ होना तो दूर रहा, सदा हम पर बोझ ही बना रहेगा|”
इस पर दूसरे विद्वान् ने कहा, “हमारा हित इसी में है कि इसे
घर पर ही छोड़ दिया जाये|”
लेकिन तीसरे विद्वान् ने कहा, “दोस्तों के साथ ऐसा बर्ताव
करना उचित नहीं है| यह सच है कि इसने पढने लिखने पर कभी ध्यान नहीं दिया, पर यह
हमारा बचपन का मित्र है| हम इसे छोड़कर नहीं जा सकते|”
इस तरह आपस में तय करके वे चारों दोस्त साथ-साथ लम्बी
यात्रा पर चल पड़े| चलते-चलते वे एक घने जंगले में जा पहुचे| इस जगह किसी जंगली
जानवर की हड्डियाँ बिखरी पड़ी थीं| हड्डियों को देखकर एक मित्र ने कहा, “यह देखो,
यहाँ किसी जानवर के अवशेष पड़े हैं| यह हमारे ज्ञान को परखने का सुनहरा मौका है| आओ
हम इस जानवर को जीवित कर दें|”
इस पर पहले विद्वान् ने कहा, “मैं इसकी हड्डियों का ढांचा
तैयार कर सकता हूँ|” दूसरा बोला, “मैं उसमे मांस, मज्जा और रक्त भरकर चमड़ी चढ़ा
दूंगा|” तब तीसरे विद्वान् ने कहा, “मैं इसमें प्राण फूंक सकता हूँ|”
फिर क्या था| पहले ने हड्डियों को जमाकर ढांचा तैयार कर
दिया| दूसरे ने उसमे चर्म, मांस, मज्जा और रक्त भर दिया| जैसे ही तीसरा उसमे प्राण
फूंकने के लिए आगे बढ़ा वैसे ही चौथा आदमी चिल्लाकर बोला, “ठहरों! इसे ज़िन्दा न
करो| देखते नहीं यह तो शेर है|”
इस पर तीसरा विद्वान् नाराज़ होकर बोला, “मूर्ख, तुम मेरी
विद्वता पर संदेह करते हो ? मैं इसे जीवित
करके ही छोडूंगा|”
“तो फिर थोडा रुको,” चौथे ने कहा और दौड़कर एक ऊँचे पेड़ पर
चढ़ गया |
तीसरे ने शेर को जीवित कर दिया| वह एक खूंखार शेर था| जीवित
होते ही उसने तीनों को सामने देखा| वह दहाड़कर उन पर झपटा और तीनों को मार डाला| जब
शेर वहां से चला गया तब चौथा आदमी नीचे उतरा और अपने घर वापस लौट गया |
समझ का फेर
बहुत दिनों की बात
है| किसी गाँव में एक किसान रहता था | उसका घर गाँव के छोर पर था | वह अपनी पत्नी
और एक बच्चे के साथ रहता था | किसान और उसकी पत्नी बच्चे को बहुत चाहते थे | एक
दिन शाम को किसान लौटकर घर आया तो अपने साथ एक नेवले का बच्चा भी लेता आया | पत्नी
के पूछने पर उसने कहा , “मैं इसे बच्चे के खेलने – दुलारने के लिए लाया हूँ |”
नन्हा नेवला और किसान का बच्चा दोनों साथ-साथ बड़े होने लगे
| पांच-सात महीने के अन्दर नेवले का बच्चा बड़ा होकर भरा-पूरा नेवला बन गया , जबकि
किसान का लड़का अब भी पालने में ही झूल रहा था | नेवला बड़ा सुंदर और प्यारा लगने
लगा | उसकी चमकीली काली आँखे और झबरे बालों वाली सुंदर पूंछ बड़ी अच्छी लगती थी |
एक दिन किसान की पत्नी को कुछ सामान खरीदने के लिए बाज़ार
जाना था | उसने बच्चे को दूध पिलाकर पालने में सुलाया और एक बड़ी टोकरी ले कर बाज़ार
जाने के लिए तैयार हुई |
जाने से पहले उसने किसान से कहा , “मैं बाज़ार जा रही हूँ |
बच्चा पालने में सो रहा है | ज़रा उसका
ध्यान रखना | मुझे इस नेवले से डर लगता है |”
किसान ने कहा , “इसमें डरने की क्या बात है | अपना नेवला तो
बहुत ही प्यारा और नेक है , जैसे हमारा बच्चा |” किसान कि पत्नी बाज़ार चली गयी |
किसान को घर में कोई काम नहीं था | बच्चा भी सो रहा था |
उसे छोड़ कर वह बाहर घूमने निकल गया | रास्ते में उसे दो –चार दोस्त मिल गये |
दोस्तों के साथ बातें करने में वह ऐसा मगन हुआ कि उसे घर लौटने की याद ही नहीं रही
|
उधर किसान की पत्नी टोकरीभर सामान खरीदकर घर पहुंची | आते
ही उसने देखा कि नेवला दरवाज़े के बाहर ऐसे बैठा है जैसे उसी का इंतजार कर रहा है |
किसान की पत्नी को देखते ही वह दौड़कर उसके पास आया | नेवले को देखते ही किसान
की पत्नी चिल्ला पड़ी , “दैया रे ! खून !”
नेवले के मुंह और पंजो पर ताजा लाल खून चमक रहा था |
“हाय , मेरे बच्चे को मार डाला ! तूने यह क्या किया ?”
किसान की पत्नी ज़ोर से रोने लगी | फिर बिना सोचे समझे ही उसने सामान से भरी टोकरी
नेवले के सिर पर दे मारी और धडधडाती हुई बच्चे के पालने की ओर दौड़ी |
बच्चा पालने में
लेटा गहरी नींद में सो रहा था | मगर उसके पालने के ठीक नीचे , खून से लथपथ एक
जहरीला काला सांप मरा पड़ा था |
मरे सांप को देखते ही किसान की पत्नी तुरंत समझ गई कि नेवले के मुंह में खून
क्यों लगा था | वह नेवले को पुकारती हुई बाहर भागी |
उसके मुंह से निकला , “हाय राम ! यह मैंने क्या कर डाला ?
इस नेवले ने तो सांप को मारकर मेरे बच्चे कि जान बचाई है | “
नेवला मर चुका था | किसान की पत्नी को अपनी करनी पर बड़ा
दुःख हुआ | वह दहाड़ मारकर रोने लगी | पर अब क्या होता | यह उसकी समझ का फेर था |
बुद्धिमान हंस
एक घने जंगल में एक बहुत ऊँचा पेड़ था | उसकी शाखाएं छतरी की
तरह फैली हुई थीं और बहुत घनी थीं | हंसों का एक झुण्ड इस पेड़ पर निवास करता था |
वे सब यहाँ सुरक्षित थे और बड़े आराम से रहते थे |
उनमें से एक बूढ़ा हंस बहुत बुद्धिमान था | उसने पेड़ के तने
के पास एक बेल को उगते देखा | इसके बारे में उसने दूसरे हंसों से बातचीत की |
बूढ़े हंस ने उनसे पूछा , “क्या तुमने पेड़ पर चढ़ती हुई इस
लता को देखा है ? तुम्हें इसे जल्दी से जल्दी नष्ट कर देना चाहिए |”
हंसों ने आश्चर्य से पूछा , “पर अभी क्यों ? यह तो इतनी छोटी
सी है | हमें यह क्या हानि पहुंचा सकती है ?“
“मेरे मित्रों, ” बूढ़े हंस ने कहा, “छोटी सी लता देखते ही
देखते बड़ी हो जाएगी | यह हमारे पेड़ पर चढ़कर उससे लिपटती जाएगी और फिर कुछ समय बाद
मोटी और मजबूत हो जाएगी |”
“तो क्या हुआ ?” हंसों ने पूछा , “एक लता हमें क्या हानि
पहुंचा सकती है ?” बुद्धिमान हंस ने उत्तर दिया, “तुम लोग समझ नही रहे हो | कोई भी
इस बेल के सहारे पेड़ पर चढ़ सकता है | कोई बहेलिया चढ़कर हमें मार सकता है |”
हंसों ने कहा , “ऐसी भी जल्दी क्या है | अभी तो यह बेल बहुत
छोटी है | इतनी छोटी सी चीज़ हमें क्या हानि पहुंचा सकती है ? फिर कभी देखेंगे |”
“लता छोटी है तभी इसे नष्ट
कर देना चाहिए ,” बुद्धिमान हंस ने सलाह दी , “अभी यह कोमल है इसलिए आसानी से काटी
जा सकती है | बाद में यह सख्त और मोटी हो जाएगी, तब तुम इसे काट नहीं सकोगे और फिर
किसी दिन यह हमारे अनिष्ट का कारण बन जाएगी |”
“अच्छा , अच्छा , देखेंगे,” सब हंसों ने उसे टालते हुए कहा
|
उस समय उन्होंने लता को नहीं काटा | कुछ दिनों में वे सब
बूढ़े हंस की बात को भूल गए | लता बढ़ती गयी | वह पेड़ के सहारे ऊपर चढ़ती गयी और उसके
चारों तरफ लिपट गई |
ज्यों-ज्यों समय गुज़रता गया बेल दृढ़ होती गई | अंत में वह
एक मोटी लकड़ी जैसी कड़ी और मज़बूत हो गई | एक दिन सुबह जब हंसों का झुण्ड भोजन की
खोज में बाहर गया हुआ था , उस समय एक बहेलिया पेड़ के पास आया |‘अच्छा , तो यही वह पेड़ है जहाँ बहुत सारे हंस रहते हैं ,’
बहेलिए ने मन ही मन सोचा , ‘जब वे शाम को घर लौटेंगे तो मेरे जाल में फंस
जायेंगे|’
बहेलिया बेल का सहारा लेकर पेड़ पर चढ़ गया | उसने बिलकुल ऊपर
पहुंचकर अपना जाल फैला दिया और जल्दी से नीचे उतर कर घर चला गया |
सांझ पड़े सब हंस घर लौटे | उन्होंने शिकारी के जाल को नहीं
देखा | ज्यों ही वे अपने घोंसलों में जाने लगे , जाल में फंस गये | उन्होंने जाल
से निकलने के लिए बहुत हाथ-पैर मारे मगर असफल रहे |
वे सब चिल्लाने लगे , “हमें बचाओ , हमें बचाओ | हम शिकारी
के जाल में फंस गये हैं | ओह , अब हम क्या करें ?” हंस ने कहा , “अब इतना क्यों घबरा रहे हो ? मैंने
तुम्हें बहुत पहले ही बेल को काट देने के लिए कहा था , मगर तुम लोगों ने मेरी एक
नहीं सुनी | अब देखो उसका क्या फल हुआ | कल सुबह बहेलिया आएगा | इस बेल के सहारे
पेड़ पर चढ़ेगा और हम सबको मौत के घाट उतार देगा |”
सब हंस रोने लगे , “हमने बड़ी मुर्खता की | हमें अफ़सोस है कि
हमने तुम्हारी बात उसी समय नहीं मानी | हमें क्षमा कर दो | कृपा करके अब यह बताओ
कि हम सब अपनी जान कैसे बचाएं ?”
बूढ़ा हंस बोला , “अच्छा तो ध्यान से सुनो कि हमें क्या करना
चाहिए |”
“बताओ , कृपाकर जल्दी बताओ कि हम क्या करें ?”
बूढ़े हंस ने कहा , “जब सुबह बहेलिया आये तो तुम सब मरे जैसे
चुपचाप पड़े रहना | बहेलिया मरे हुए पक्षियों को कोई हानि नहीं पहुंचाएगा | वह
उन्हें घर ले जाने के लिए जाल से निकालकर एक-एक करके ज़मीन पर फेंक देगा | जब वह
आखिरी पक्षी को भी निकालकर फेंक दे तो सब जल्दी से उड़ जाना |”
सुबह बहेलिया आया और पेड़ पर चढ़ गया | उसने जाल में फंसे
हंसों को देखा , उसे सभी पक्षी मरे हुए लगे | उसने एक-एक पक्षी को जाल से निकाला
और ज़मीन पर फेंकता गया | जब तक उसने आखिरी पक्षी ज़मीन पर न फेंक दिया , सब दम साधे
पड़े रहे | बहेलिया समझा कि वे सब मरे हुए हैं | ठीक है ? यह क्या ! एकाएक सब
ज़िन्दा हो गये | सबके सब पंख फडफडाकर उठे और उड़ गये |
गवैया गधा
एक धोबी के पास एक
बूढ़ा-सा मरियल गधा था | गधा रोज़ सवेरे मैले कपड़ों की गठरी लेकर घाट जाता और शाम को
धुले कपड़ों को लादकर घर लता था | रात होने पर उसे घूमने की छुट्टी मिल जाती थी |एक
बार घूमते-फिरते उसकी भेंट एक गीदड़ से हुई | दोनों दोस्त बन गये | अब दोनों भोजन
की तलाश में साथ-साथ घूमने लगे |
इसी तरह घूमते-फिरते
वे एक पके खीरों के खेत में जा पहुंचे और पेट भरकर खीरे खाए | दूसरी रात वे फिर
वहीँ गये और जी भरकर खीरे खाए | अब तो रोज़ ही खीरों की दावत होने लगी | खीरे
खा-खाकर मरियल गधा खूब मोटा-ताज़ा हो गया | एक रात भरपेट खीरे खाने के बाद गधा मस्त
हो गया और मौज में आकर गीदड़ से बोला , “भतीजे देखो , आसमान की तरफ देखो | चाँद कैसा चमक
रहा है , अहा! कैसी सुहावनी रात है | मेरा मन तो गाने को कर रहा है |”
गीदड़ बोला , “अरे , कहीं गाने ही न लगना | खेत के रखवालों ने
सुन लिया तो बैठे-बिठाये आफत गले पड़ जाएगी | चोर के लिए चुप ही रहना भला होता है |”
गधे ने कहा , “क्या बात करते हो जी ? इतना प्यारा मौसम है और
मैं बहुत खुश हूँ | मुझसे अब रहा नहीं जाता | मैं तो एक बढ़िया गाना गाऊंगा |”
गीदड़ ने समझाया , “ना चाचा, ना | मुंह बंद ही रखो तो अच्छा है |
इसके अलावा तुम्हारी आवाज़ भी तो सुरीली नहीं है |”
“तुम मुझसे जलते हो ,” गधा बोला , “तुमको न सुर का पता है न ताल का | संगीत का आनंद
तुम क्या जानो |”
गीदड़ ने कहा , “यह तो खैर ठीक है | लेकिन इस संगीत का आनंद केवल
तुमको ही आएगा | खेत वाले तो तुम्हारा गाना सुनकर फ़ौरन यहाँ आ धमकेंगे और तुम्हें
ऐसा इनाम देंगे कि बरसों याद रखोगे | इसीलिए कहता हूँ मेरी बात मान लो और गाने का
इरादा छोड़ दो |”
गधे ने जवाब दिया , “तुम मुर्ख हो | महामूर्ख हो | तुम समझते हो कि
मैं अच्छा गाना नहीं गा सकता| लो सुनो, मेरा गला मीठा है या नहीं ?”ऐसा कहकर गधे ने रेंकने के लिए मुंह ऊपर उठाया |
गीदड़ ने उसे रोकते
हुए कहा , “ठहरो चाचा , ठहरो| पहले मैं बाहर चला
जाऊं, फिर तुम जी भरकर गा लेना | मैं बाहर ही तुम्हारा इंतज़ार करूँगा |”
गीदड़ के जाते ही गधे ने ऊँचे स्वर में अपना राग अलापना शुरू कर दिया|
खेत के रखवालों ने जैसे ही गधे का रेंकना सुना वैसे ही अपने-अपने डंडे लेकर खेत की
और दौड़े | गधा बेखबर रेंकता ही जा रहा था कि उस पर डंडे बरसने लगे | रखवालों ने
उसे इतना मारा कि वह ज़मीन पर लुढ़क गया | फिर उन्होंने गधे के गले में एक भारी
पत्थर बाँध दिया और चले गये | गीदड़ खेत के बाहर खड़ा गधे का इंतज़ार कर रहा था | तभी
गधा भारी पत्थर के साथ किसी तरह घिसटता हुआ बाहर आया | उसे देखते ही गीदड़ बोला , “वाह चाचा! रखवालों
ने तुम्हारे गाने पर इतना सुन्दर इनाम दिया है | बधाई हो , बधाई!”
गधे ने कहा, “अब और शर्मिंदा न
करो | मुझे तुम्हारी सलाह न मानने का बहुत अफ़सोस है |”
बोलती गुफा
एक भूखा शेर शिकार की खोज में जंगल में घूम रहा था | घूमते-घूमते वह थक गया | उसकी भूख भी बढ़ गई | अकस्मात उसे एक गुफा नज़र आई | शेर ने सोचा कि इस गुफा में ज़रूर कोई जानवर रहता होगा | अच्छा हो मैं उस झाड़ी में छिप जाऊं | ज्यों ही वह निकलेगा , मैं धर दबोचूँगा |
एक भूखा शेर शिकार की खोज में जंगल में घूम रहा था | घूमते-घूमते वह थक गया | उसकी भूख भी बढ़ गई | अकस्मात उसे एक गुफा नज़र आई | शेर ने सोचा कि इस गुफा में ज़रूर कोई जानवर रहता होगा | अच्छा हो मैं उस झाड़ी में छिप जाऊं | ज्यों ही वह निकलेगा , मैं धर दबोचूँगा |
उसने काफी देर तक इंतज़ार किया मगर कोई बाहर न आया | तब शेर
ने सोचा , हो न हो वह कहीं बाहर गया है | मैं गुफा के अन्दर जाकर उसकी राह देखता
हूँ | ज्योंही वह घुसेगा मैं उसे हड़प कर जाऊंगा | ऐसा सोचकर शेर गुफा के एक कोने
में जा छिपा |
उस गुफा में एक गीदड़ रहता था | थोड़ी देर में वह वापस लौटा |
गुफा के पास उसे किसी के पैरों के निशान मिले | उसने विचार किया कि ये निशान ज़रूर किसी
बड़े और खतरनाक जानवर के लगते हैं | एकदम घुसना ठीक नहीं है | देखें क्या मामला है
|
गीदड़ बड़ा सयाना था | उसने ऊँची आवाज़ में पुकारा , “गुफा ! ओ
गुफा ! ”
लेकिन जवाब कौन देता ? सब चुप | गीदड़ ने फिर आवाज़ लगाई ,
“अरे मेरी गुफा , तू जवाब क्यों नहीं देती ? क्या मर गई है ? आज तुझे क्या हो गया
? मेरे लौटने पर तो तू हमेशा मेरा स्वागत करती है | आज क्या हो गया ? अगर तूने
जवाब न दिया तो मैं किसी दूसरी गुफा में चला जाऊंगा |”
शेर ने गीदड़ की सारी बातें सुनीं | उसने सोचा , ‘ यह गुफा
तो गीदड़ का स्वागत करती है | चूँकि मैं यहाँ हूँ इसलिए शायद दर गई है | गीदड़ को
नहीं बुलाया तो वह चला जाये गा |’
सो शेर अपनी भारी आवाज़ में बोल उठा , “आओ , आओ मेरे दोस्त ,
तुम्हारा स्वागत है |”
शेर की आवाज़ सुनते ही चालाक गीदड़ वहां से नौ-दो-ग्यारह हो
गया|
तीन मछलियाँ
एक समय की बात थी, एक तालाब में तीन मछलियाँ रहती। उन तीन मछलियों का नाम, अनागतविधाता, प्रत्युत्पन्नमति और यद्भाविश्य था। एक समय कुछ मछुआरों का समूह उस तालाब के पास से गुजर रहे थे। तभी एक मछुआरे ने कहा, “लगता है की हमने यह तालाब कभी नहीं देखा। यह तालाब मछलियों से भरा हुआ लगता है। हमें शाम को इस तालाब में जाल लगाना चाहिए और अधिक से अधिक मछलियों को पकड़ने का प्रयास करना चाहिए।”. सभी मछुआरों ने उस मछवारे की बात मान ली। यह सब बात अनागतविधाता ने सुन ली और सुन कर सभी मछलियों की एक बैठक बुलाई। अनागतविधाता ने सारी बात सभी मछलियों को बताई और बोली की हमें जल्दी से यह तालाब से कोई दूसरे तालाब में चले जाना चाहिए क्यूँकी कमजोर व्यक्ति को उस जगह से चले जाना चाहिए जहाँ शक्तिशाली व्यक्ति आक्रमण करे। इस बात पर प्रत्युत्पन्नमति की बात मानते हुए कहा कि अनागतविधाता सही कहती है, हमें इस तालाब से दूसरी जगह चले जाना चाहिए। लेकिन यद्भाविश्य इस बात से सहमत ना हुई और बोली कि हमें आपने पूर्वजों के इस तालाब से नहीं जाना चाहिए। जो होगा वो हमारे भाग्य में है। अनागतविधाता और प्रत्युत्पन्नमति के बहुत समझाने पर भी यद्भाविश्य ना मानी। कुछ समय के बाद अनागतविधाता, प्रत्युत्पन्नमति और कुछ सी मछलियों उस तालाब से चली गयी। शाम को वो मछवारे आये और जाल लगा कर बहुत से मछलियों को पकड़ ले गए। उन मछलियों में यद्भाविश्य भी थी।
इसलिए कहते है कि जो लोग भाग्य के भरोसा में रहते है उनको कोई नहीं बचा सकता!
बन्दर और मगरमच्छ
एक नदी के किनारे एक जामुन के पेड़ पर एक बन्दर रहता था जिसकी मित्रता उस नदी में रहने वाले मगरमच्छ के साथ हो गयी |वह बन्दर उस मगरमच्छ को भी खाने के लिए जामुन देता रहता था |एकदिन उस मगरमच्छ ने कुछ जामुन अपनी पत्नी को भी खिलाये | स्वादिष्ट जामुन खाने के बाद उसने यह सोचकर कि रोज़ाना ऐसे मीठे फल खाने वाले का दिल भी खूब मीठा होगा ;अपने पति से उस बन्दर का दिल लाने की ज़िद्द की | पत्नी के हाथों मजबूर हुए मगरमच्छ ने भी एक चाल चली और बन्दर से कहा कि उसकी भाभी उसे मिलना चाहती है इसलिए वह उसकी पीठ पर बैठ जाये ताकि सुरक्षित उसके घर पहुँच जाए |बन्दर भी अपने मित्र की बात का भरोसा कर, पेड़ से नदी में कूदा और उसकी पीठ पर सवार हो गया |जब वे नदी के बीचों-बीच पहुंचे ; मगरमच्छ ने सोचा कि अब बन्दर को सही बात बताने में कोई हानि नहीं और उसने भेद खोल दिया कि उसकी पत्नी उसका दिल खाना चाहती है |बन्दर को धक्का तो लगा लेकिन उसने अपना धैर्य नहीं खोया और तपाक से बोला –‘ ओह, तुमने, यह बात मुझे पहले क्यों नहीं बताई क्योंकि मैंने तो अपना दिल जामुन के पेड़ की खोखल में सम्भाल कर रखा है |अब जल्दी से मुझे वापिस नदी के किनारे ले चलो ताकि मैं अपना दिल लाकर अपनी भाभी को उपहार में देकर; उसे खुश कर सकूं |’ मूर्ख मगरमच्छ बन्दर को जैसे ही नदी-किनारे ले कर आया ;बन्दर ने ज़ोर से जामुन के पेड़ पर छलांग लगाई और क्रोध में भरकर बोला –“अरे मूर्ख ,दिल के बिना भी क्या कोई ज़िन्दा रह सकता है ? जा, आज से तेरी-मेरी दोस्ती समाप्त |”
मित्रो ,बचपन में पढ़ी यह कहानी आज भी मुसीबत के क्षणों में धैर्य रखने की प्रेरणा देती है ताकि हम कठिन समय का डट कर मुकाबला कर सकें | दूसरे, मित्रता का सदैव सम्मान करें |
राजा और मूर्ख बन्दर
एक समय
की बात है,
एक राजा ने
एक पालतू बन्दर
को अपने सेवक
के रूप में
रखा हुआ था।
जहाँ – जहाँ राजा
जाता, वह बन्दर
भी उसके साथ
जाता। राजा के
दरबार में उस
बन्दर को राजा
का पालतू होने
के कारण कोई
रोक – टोक नहीं
थी। एक गर्मी
के मौसम के
दिन राजा अपने
शयन पर विश्राम
कर रहा था।
वह बन्दर भी
शयन के पास
बैठ कर राजा
को एक पंखे
से हवा कर
रहा था। तभी
एक मक्खी आई
और राजा की
छाती पर आकर
बेठ गयी। जब
बन्दर ने उस
मक्खी को बेठा
देखा तो उसने
उसे उड़ाने का
प्रयास किया। हर
बार वो मक्खी
उडती और थोड़ी
देर बाद फिर
राजा की छाती
पर आ कर
बेठ जाती। यह
देख कर बन्दर
गुस्से से लाल
हो गया। गुस्से
में उसने मक्खी
को मारने की
ठानी। फिर वो
बन्दर मक्खी को
मारने के लिए
हथियार ढूडने लगा।
कुछ दूर ही
उसे राजा की
तलवार दिखाई दी।
उसने वो तलवार
उठाई और गुस्से
में मक्खी को
मारने के लिए
पूरे बल से
तलवार राजा की
छाती पर मार
दी। इससे पहले
की तलवार मक्खी
को लगती, मक्खी
वहाँ से उड़
गयी। बन्दर के
बल से किये
गए वार से
मक्खी तो नहीं
मरी मगर उससे
राजा की मृत्यु
अवश्य हो गयी।
इसलिए कहते
है कि मूर्ख
को अपना सेवक
बनाने में कोई
भलाई नहीं!
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